अतिरिक्त >> केसरी सिंह की रिहाई केसरी सिंह की रिहाईआचार्य चतुरसेन
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प्रस्तुत है कहानी केसरी सिंह की रिहाई,आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
केशरी सिंह की रिहाई
वसन्त का मौसम था, धूप निकल रही थी। महल की दीवारें पत्थर के टुकड़ों की
थीं, इनमें खिड़कियाँ लगीं हुई थीं जिनमें से होकर सूर्य का प्रकाश वहां
पड़ रहा था। महल का फर्श स्वच्छ मकराने के पत्थरों का था । महाराणा
मध्यबिंदु की भांति, बीच में एक शीतल पाटी पर बैठे थे। उनका कद मझोला,
मूँछें एक-आध पकी हुई, रंग सांवला आँखें बड़ी-ब़डी थीं। दाढ़ी नहीं थी। वह
बदन पर एक रेशमी बहुमूल्य चादर डाले थे। सिर पर दूध के झाग के समान सफेद
पगड़ी थी, जिस पर एक बड़ा-सा लाल तुर्रा लगा था। गले में पन्ने का अत्यन्त
मूल्यवान कण्ठा था। उसका सीना चौड़ा उठान ऊँची और शरीर बलवान और फुर्तीला
था उनकी कमर में पीले रंग की धोती थी। उनके सिर के बाल काले और बड़ी-बड़ी
आँखें मस्ती से भरपूर थी।
महाराणा के दाहिने हाथ पर उनके ज्येष्ठ पुत्र कुमार भीमसिंह बैठे थे। दोनों के मध्य बीच-बीच में धीमे बातें हो रही थी। कुछ, सरदार कान लगाकर बातें सुन रहे थे और कुछ खाने में लगे हुए थे।
‘‘बादशाह आलमगीर से जो यह नई संधि हुई है, यह हम दोनों के लिए शुभ है। अब देखना यही है कि धूर्त बादशाह उसका पालन करता भी है या नहीं।’’ महाराणा ने सहज गम्भीर स्वर में कुँवर भीम सिंह से कहा।
कुमार ने कुछ खिन्न होकर कहा, ‘‘रावरी जैसे मर्जी हुई, वही हुआ। परन्तु आलमगीर पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता वह पूरा धूर्त और दुष्ट आदमी हैं।’’
महाराणा ने जरा ऊंचे, किंतु मृदु स्वर से कहा-‘‘इस संधि से दो शत्रु परस्पर मित्र हो जाएगें। देश की बिगड़ी हुई दशा सुधरेगी। कृषि-व्यापार और व्यवस्था ठीक होगी । देश में अमन-अमान कायम होगा।’’
एक सरदार ने खाते-खाते कहा, ‘‘घणी खम्मा अन्नदाता, हम तो चारों तरफ से लूट-मार और जुल्म के समाचार सुन रहे हैं। संधि हुए अभी एक मास भी नहीं हुआ।
महाराणा के दाहिने हाथ पर उनके ज्येष्ठ पुत्र कुमार भीमसिंह बैठे थे। दोनों के मध्य बीच-बीच में धीमे बातें हो रही थी। कुछ, सरदार कान लगाकर बातें सुन रहे थे और कुछ खाने में लगे हुए थे।
‘‘बादशाह आलमगीर से जो यह नई संधि हुई है, यह हम दोनों के लिए शुभ है। अब देखना यही है कि धूर्त बादशाह उसका पालन करता भी है या नहीं।’’ महाराणा ने सहज गम्भीर स्वर में कुँवर भीम सिंह से कहा।
कुमार ने कुछ खिन्न होकर कहा, ‘‘रावरी जैसे मर्जी हुई, वही हुआ। परन्तु आलमगीर पर कभी विश्वास नहीं किया जा सकता वह पूरा धूर्त और दुष्ट आदमी हैं।’’
महाराणा ने जरा ऊंचे, किंतु मृदु स्वर से कहा-‘‘इस संधि से दो शत्रु परस्पर मित्र हो जाएगें। देश की बिगड़ी हुई दशा सुधरेगी। कृषि-व्यापार और व्यवस्था ठीक होगी । देश में अमन-अमान कायम होगा।’’
एक सरदार ने खाते-खाते कहा, ‘‘घणी खम्मा अन्नदाता, हम तो चारों तरफ से लूट-मार और जुल्म के समाचार सुन रहे हैं। संधि हुए अभी एक मास भी नहीं हुआ।
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